Raigarh News: केलो को प्रदूषित होने से बचाने करोड़ों खर्च कर बनाया एसटीपी, फिर भी नदी में मिल रहा नाले का गंदा पानी..!


रायगढ़
। केलो नदी को प्रदूषित होने से बचाने के लिए नगर निगम ने करोड़ों रुपए खर्च कर एसटीपी (सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) तो बना दिया है, बावजूद इसके नदी में नाले का पानी निरंतर मिल रहा है। इस संबंध में निगम के अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है और संबंधित नाले को एसटीपी के प्लान से बाहर का बताया जा रहा है।
शहर की जीवनदायिनी केलो नदी सालों से अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। केलो नदी को प्रदूषित करने वाले भी शहरवासी ही हैं जो किसी न किसी माध्यम से नदी में गंदगी फैला रहे हैं। सबसे ज्यादा नदी के पानी को प्रदूषित आसपास के नाले कर रहे थे, जिनका पानी नदी में आकर मिल रहा था। इसके रोकथाम के लिए सालों पहले नगर निगम ने एसटीपी का सपना देखा था। करीब 57 करोड़ रुपए खर्च कर इसी साल सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बन कर तैयार हुआ है।

एसटीपी के प्लान के अनुसार आसपास के नालों का पानी नदी में न जाकर सीधे पाइप लाइन के माध्यम से प्लांट तक जाना था और फिर वहां से इस पानी को फिल्टर किया जाना है लेकिन आज भी नदी के दोनों तरफ कई स्थानों में नालों का पानी नदी में जाकर समाहित हो रहा है। जिससे एसटीपी का कोई फायदा शहरवासियों को नहीं मिल पा रहा है। इस संबंध में निगम के अधिकारी स्पष्ट रूप से कुछ भी कह नहीं पा रहे हैं। जिससे शासन के करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी केलो नदी प्रदूषण से मुक्त नहीं हो पा रही है।


इन पर क्यों नहीं होती कार्रवाई
नालों के पानी के अलावा शहरवासी भी केलो को प्रदूषित कर रहे हैं। घर का कचरा, कूड़ा-करकट, मांस-मटन के अवशेष, पूजन सामग्री फेंक कर और नदी में वाहनों को धोकर केलो नदी को प्रदूषित किया जा रहा है। पानी कम होने और बहाव तेज नहीं होने से ये कचरे नदी में ही रूक कर बदबू पैदा कर रहे हैं। ऐसे लोगों पर भी निगम को कार्रवाई करनी चाहिए। इसके अलावा सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाओं को भी केलो के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं होता।


जिंदल कंपी से नहीं मिला रिस्पोंस तो पड़ गए शांत
एसटीपी के पानी को खरीदने निगम को खरीददार नहीं मिल रहा है। निगम ने जिंदल से पानी के लिए अनुबंध करने का काफी प्रयास किया, लेकिन जिंदल द्वारा जल संसाधन विभाग से पानी लेने का एग्रीमेंट होने के कारण कोई रिस्पोंस नहीं दिया गया। ऐसे में निगम के अधिकारी भी शांत पड़ गए। जिससे करोड़ों का प्लांट सिर्फ प्लांट तक ही सीमित रह गया है।


इन स्थानों से नदी में घुस रहा नाले का पानी
शहर के खर्राघाट मरीन ड्राइव में भोले मंदिर के पास से एक बड़े नाले का पानी निरंतर नदी में जाकर मिल रहा है। इस नाले में आसपास के सैकड़ों लोगों के घरों का गंदा पानी आता है। इसके अलावा इसी नाले से 200 मीटर की दूरी पर भी एक नाले का पानी नदी में जाकर मिल रहा है। इसके अलावा शनि मंदिर मरीन ड्राइव में कोष्टापारा नाला और चांदनी चौक नाले का गंदा पानी भी भारी मात्रा में नदी में समाहित हो रहा है। खास बात यह है कि जब नदी के किनारे-किनारे एसटीपी के लिए पाइप लाइन बिछाई गई तब इन नालों को ध्यान में नहीं रखा गया या भूल गए यह समझ से परे है।

आप जितने भी नाले के बारे में बता रहे हैं जिसका पानी केलो नदी में मिल रहा है वो प्राकृतिक नाला नहीं है। ये एसटीपी के प्लान में ही नहीं था। इसके अलावा जिन नालों के पानी को नदी में जाने ब्लॉक किया गया है वहां का भी पानी अगर नदी में जा रहा है तो वो ओवर फ्लो की वजह से है। कई बार नाले में ज्यादा कचरा डंप होने से ऐसा होता है, मैं दिखवाता हूं।
ऋषि राठौर, नोडल अधिकारी, एसटीपी

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